हैप्पीनेस क्लास : नहीं बनेगी बात

हैप्पीनेस क्लास : नहीं बनेगी बात

अमेरिका की प्रथम महिला मेलानिया ट्रंप को दिल्ली के सरकारी स्कूल के हैप्पीनेस क्लास में ऐसा क्या दिखा कि उनका दिल बाग-बाग हो गया? दिल्ली में कोई दो साल पहले ही हैप्पीनेस क्लास के रूप में परिमार्जित योग को स्कूली शिक्षा में शामिल किया गया था। पर अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस और आस्ट्रेलिया के स्कूलों में हैप्पीनेस शिक्षा एक दशक या उससे पहले ही प्रारंभ कर दी गई थी। हैप्पीनेस क्लास के लिहाज से 940 स्कूलों को आदर्श स्कूल में तब्दील किया जा चुका है, जहां कोई 54 सौ योग प्रशिक्षक व्यापक स्तर पर योग शिक्षा देते हैं।

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दूसरी तरफ अपनी योग-शक्ति के लिए दुनिया में मशहूर भारत हैप्पीनेस के मामले में 155 देशों की सूची में 133वें स्थान पर है। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2018 के मुताबिक एक साल पहले तक भारत 122वें स्थान पर था। दिल्ली और उत्तर प्रदेश को छोड़ दें तो व्यवस्थित रूप से योग शिक्षा अन्य किसी राज्य में नहीं दी जा रही है। मेलानिया के दौरे से दिल्ली की हैप्पीनेस शिक्षा को प्रचार मिला तो कई राज्य उसी पैटर्न पर काम करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।

फिर मेलानिया ट्रंप को किन बातों ने आकर्षित किया कि वह दिल्ली सरकार के हैप्पीनेस करिकुलम की दीवानी हो गईं? इस सवाल का जबाव बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के वक्तव्यों में तलाशा जा सकता है। दिल्ली के स्कूलों में हैप्पीनेस क्लासेज का शुभारंभ करते हुए दलाई लामा ने कहा था कि भारत एक मात्र ऐसा देश है जो प्राचीन ज्ञान और मॉडर्न एजुकेशन को साथ लेकर चल सकता है। इसलिए हैप्पीनेस करिकुलम के तहत नर्सरी से लेकर 8वीं क्लास तक के बच्चे भावनात्मक रूप से मजबूत होंगे।

यह सच है कि मुख्य रूप से ध्यान की विधियों के मद्देनजर तैयार हैप्पीनेस करिकुलम के आधार पर दी जा रही शिक्षा असर दिखा रहा है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की दावे में दम है कि हैप्पीनेस क्लास से छात्रों का चित्त शांत रहता है। उनमें एकाग्रता बढ़ी है और स्कूल की ओर रुझान बढ़ा है। साथ ही गुस्सा, द्वेष और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावनाओं में आश्चर्यजनक ढंग से कमी आई है। जबकि अमेरिका में हैप्पीनेस क्लास ज्यादा व्यवस्थित और हाईटेक होने के बावजूद दिल्ली जैसे परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। इसलिए कि उस करिकुलम में भारत जैसी एकाग्रता और श्वासन नियंत्रण की विधियों का समावेश नहीं है। शायद यही वजह रही हो कि दिल्ली का हैप्पीनेस करिकुलम मेलानिया को भा गया।

भारत की परंपरागत योग विद्या के आलोक में दिल्ली के हैप्पीनेस करिकुलम पर नजर डालें तो कहना होगा कि शुरूआत तो ठीक है। पर सात साल से ज्यादा उम्र के बच्चों के मामले में इतने से बात बनने वाली नहीं। करिकुलम में परंपरागत योग की कई विधियों का समावेश करना होगा। तभी छात्रों की शारीरिक संरचना को स्वस्थ रखकर उनकी प्रतिभाओं को निखारा जा सकेगा, जिससे उनके जीवन में वास्तविक खुशी का प्रस्फुटन हो सके। भारत में आठ-दस साल की उम्र से ही योगाभ्यास कराने की परंपरा रही है। हिंदू रीति-रिवाज के तहत यगोपवीत अनुष्ठान में बच्चों को सूर्य नमस्कार, नाड़ी शोधन प्राणायाम और गायत्री मंत्र की शिक्षा दी जाती थी। समय के साथ चीजें बदल गईं। योग विद्या का ह्रास हो गया। कालांतर में संकट के बादल मंडराने लगे हैं तो फिर योग विद्या की याद आई है।

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बीते तीन दशकों में दुनिया भर में हुए अनुसंधानों से पता चल चुका है कि आठ साल की उम्र से अष्टांग योग की कुछ विधियां मंत्र के साथ बेहद फायदेमंद होता है। बच्चों का न केवल शरीर लचीला बनता है, बल्कि विभिन्न ग्रंथियों की सूक्षम मालिश हो जाती है। थाइरायड की समस्या नहीं आती, इंसुलिन का दोषपूर्ण स्राव नहीं होता और सबसे महत्वपूर्ण पीनियल ग्रंथि युवावस्था के दस्तक देने तक स्वस्थ रहती है। मानसिक संतुलन बना रहता है। बुद्धि कुशाग्र होती है।

अनेक अध्ययनों की रिपोर्ट इस बात के गवाह हैं कि सात वर्ष से लेकर किशोरावस्था शुरू होने तक बच्चों का प्राय: शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास साथ-साथ नहीं होता। मस्तिष्क, स्नायुतंत्र और अंत:स्रावी तंत्र  शारीरिक विकास से या तो पहले या बाद में विकसित होता है। इससे कई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जैसे, थाइरायड ग्रंथि और एड्रिनल ग्रंथि स्वस्थ न हो और उससे अधिक स्राव हो रहा हो तो बच्चा डरा-सहमा रहता है। शिक्षक यदि सख्त हुए तो बच्चा स्कूल जाने से डरेगा। इन हार्मोनों में संतुलन होने पर ही समस्या का समाधान संभव होता है।

सात-आठ साल की उम्र से पीनियल ग्रंथि, जिसे योग की भाषा में इसे आज्ञा चक्र कहते हैं, का भी ह्रास होने लगता है। इससे समय से पहले भावनात्मक विकास तेजी से होने लगता है। एक सीमा के बाद यौन हार्मोन शरीर में सक्रिय हो जाता है। कम उम्र के बच्चों के लिए इस बदलाव से सामंजस्य बिठाना मुश्किल हो जाता है। फलस्वरूप अपरिपक्व बच्चे आक्रमक हो जाते हैं। उम्र के हिसाब से ग्रंथियों में होने वाले बदलावों और उनके बारे में हुए वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि लगभग आठ साल तक पीनियल ग्रंथि बिल्कुल स्वस्थ रहती है। उसके बाद दोनों भौहों के बीच यानी भ्रू-मध्य के ठीक पीछे मस्तिष्क में अवस्थित यह ग्रंथि कमजोर होने लगती है। बुद्धि और अंतर्दृष्टि के मूल स्थान वाली यह ग्रंथि किशोरावस्था में अक्सर विघटित हो जाती है।

परिणामस्वरूप उस ग्रंथि के भीतर की पीनियलोसाइट्स कोशिकाओं से मेलाटोनिन हॉरमोन बनना बंद हो जाता है। इस हॉरमोन का सीधा संबंध यौन परिपक्वता से है। इस पर बड़े-बड़े शोध हुए हैं। देखा गया है कि अनुकंपी (पिंगला) और परानुकंपी (इड़ा) नाड़ी संस्थान के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है। नतीजतन, पिट्यूटरी ग्रंथि से हॉरमोन का रिसाव शुरू होकर शरीर के रक्तप्रवाह में मिलने लगता है। पीनियल और पिट्यूटरी, इन दोनों ग्रंथियों का परस्पर गहन संबंध है। सच कहिए तो पीनियल ग्रंथि पिट्यूटरी ग्रंथि के लिए ताला का काम करती है। ताला खुलते ही पिट्यूटरी अनियंत्रित होती है औऱ बाल मन में उथल-पुथल मच जाता है।

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इन तथ्यों से स्पष्ट है कि आठ से बाहर साल तक के बच्चों के जीनव को बेहतर बनाने के लिए योग का पहला काम पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ रखना होना चाहिए। यह तभी संभव है जब शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सूर्य नमस्कार, पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ व संतुलित रखने के लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम, इसी ग्रंथि को सक्रिय रखने के लिए मानस दर्शन के साथ शांभवी मुद्रा यानी भ्रूमध्य पर आंखों की एकाग्रता का अभ्यास और सकारात्मक ऊर्जा का संचार के लिए गायत्री मंत्र को छात्रों दैनिक जीवन का हिस्सा बनाया जाएगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आनंद या हैप्पीनेस आत्यंतिक मर्म है। इसकी अनुभूति बाहर से नहीं होती। अपने चैतन्य में स्थित होकर ही इस अवस्था में पहुंचा जा सकता है। इस मुकाम तक पहुंचने के साधन के रूप में गायत्री मंत्र के साथ अष्टांग योग की विधियों के अभ्यास का कोई विकल्प नहीं है। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

 

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